विश्व शान्ति दिवस पर विशेषसांस्कृतिक क्रान्ति का अर्थ संस्कारित करना- स्वामी प्रभाकर



        आजमगढ़। सांस्कृतिक क्रान्ति का अर्थ संस्कारित करना परिष्कृत करना भीतर से सजाना और परिवर्तन लाना यह ऐसी क्रान्ति है, जिससे हमारा हृदय हमारी चेतना हमारा अन्तःकरण, मनः चित्त आन्तरिक प्रवृत्ति ही सकारात्मक रूप से बदल जाये और यह परिवर्तन ब्रह्मज्ञान द्वारा ही आ सकता है। इस परिवर्तन को ही महर्षि अरविन्द ने सम्पूर्ण क्रान्ति का सांस्कृतिक क्रान्ति कहा है।
उक्त बाते स्वामी प्रभाकर नन्द ने सोमवार को अपने़ आश्रम से विश्व शन्ति दिवस पर जारी विज्ञप्ति में कहा। उन्होनें कहा कि क्रान्ति का अर्थ आनन्दपूर्ण परिवर्तन है अर्थात पूर्ण बदलाव। विश्व आज तक राजनैतिक सामाजिक, औद्योगिक आर्थिक आदि कई क्रान्तियां देखा है। आप हेरान होंगे कि सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए पिछले 3000 सालों में करीब 5000 युद्ध लड़े जा चुके है। पर प्रश्न यह है कि क्या ये क्रान्तियां युद्ध अपने लक्ष्य में सफल हुए। क्या समाज का शोषण से मुक्त करने के लिए जिन्होनें नारे बुलन्द किये वे खुद ही शोषक बन गये। फिरंगियों को खदेड़ने के लिए अपने धरती से क्रान्तिकारी वीरों ने बलि चढ़ाकर स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला को जिवित रख। आज भारत विश्व का बड़ा जनतंत्र देश बन गया। आज जनतंत्र व राजतत्र में क्या फर्क है,जो कार्य राजा करते थे वह अब नेता करते है। फिर बदलाव कहॉ आया? क्रान्तियों का लक्ष्य अगर व्यवस्थापक व व्यवस्था बदलना न हो तो क्या हो? मेरा यह कहना है कि जब तक क्रान्तियों द्वारा केवल व्यवथापक बदले जायेगे तब तक स्थिति बदलने वाली नहीं है। क्रान्तियों का लक्ष्य अगर व्वस्थापक या व्यवस्था बदलना न हो तो क्या हो। इसका उत्तर है कि यदि बदलता है तो व्यवस्थापकों के अर्न्तमन को बदले।
            अन्त में कहा कि जब तक इंसान का मन विकसित नहीं हुआ, चेतना जागृत नहीं हुई, तब तक वह कभी किसी समाधान का अंग नहीं बन सकता। केवल और केवल समस्या का ही अंग बनेगा। अगर यथार्थ में क्रान्ति लानी है, यानी आनंदकारी परिवर्तन की चाह है, तो सर्वप्रथम व्यक्ति को चेतना और अंतम्रन में परिवर्तन लाना होगा। अध्यात्म द्वारा उसे जागृत करना होगा। ब्रह्मज्ञान की अग्नि में उसके मन-चित में बसे कुसंस्कारों, तृष्णाओं, स्वाथों को स्वाहा करना होगा। इस मन रूपी जड़ को परिवर्तित करने पर ही समाज में परिवर्तन संभव है और यह परिवर्तन केवल ‘ब्रह्मज्ञान‘ द्वारा ही आ सकता है। ब्रह्मज्ञान का प्रचार-प्रसार कर दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आज इसी कार्य में संलग्न है।

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