आज का दिन महिलाओं के खुशी का दिन, प्रतिभा पाटिल बनी थी आज के दिन देश की प्रथम महिला-रीता मौर्य
आजमगढ़। शहर कांग्रेस की अध्यक्षा रीता मौर्या ने कहा कि देश की महिलाओं के लिए 21 जुलाई का दिन खुश होने की एक खास वजह लेकर आया। 12 बरस पहले इसी दिन देश को प्रतिभा पाटिल के रूप में पहली महिला राष्ट्रपति मिलीं। 19 दिसंबर 1934 को जन्मीं प्रतिभा देवीं सिंह पाटिल 2007-2012 तक देश की 12वीं राष्ट्रपति बनीं, वह देश का यह सर्वोच्च संवैधानिक पद ग्रहण करने वाली पहली महिला थीं। वह 21 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव में विजयी रहीं और 25 जुलाई 2007 को उन्हें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई। और देश-दुनिया के इतिहास में 21 जुलाई की तारीख में भारत के सर्वश्रेष्ठ पद पर महिलाओं के नाम दर्ज हो गया।
प्रतिभा पाटिल स्वतंत्र भारत के 60 साल के इतिहास में देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाली प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं। प्रतिभा पाटिल कांग्रेस पार्टी के साथ काफी लम्बे समय से जुड़ी रहीं और राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाते समय वो राजस्थान की राज्यपाल थीं. वो 2007 से 2012 तक देश की 12वीं राष्ट्रपति रहीं ।
प्रतिभा पाटिल का जन्म ‘जलगाँव’ के ‘नदगाँव’ नामक ग्राम में 19 दिसम्बर, 1934 को हुआ था। इनके पिता का नाम ‘नारायण राव पाटिल’ था, जो पेशे से सरकारी वकील थे। उस समय देश पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। ऐसे में यह कल्पना करना कि देश स्वाधीन होगा और स्वाधीन भारत की महामहिम राष्ट्रपति नदगाँव ग्राम की एक बेटी बनेगी, सर्वथा असम्भव ही था।
बताते चले कि प्रतिभा पाटिल ने आरम्भिक शिक्षा नगरपालिका की प्राथमिक कन्या पाठशाला से आरम्भ की थी। कक्षा चार तक की पढ़ाई श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने उसी पाठशाला में की। फिर इन्होंने जलगाँव के नये अंग्रेजी स्कूल में कक्षा पाँच में दाखिला ले लिया। वर्तमान में उस स्कूल को ‘आर.आर. विद्यालय’ के नाम से जाना जाता है। विद्यालय स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए भी प्रतिभा पाटिल ने अपने व्यक्तित्व का विकास अन्य गतिविधियों में लिप्त रहते हुए किया। भाषण, वाद-विवाद एवं खेलकूद की गतिविधियों में भी प्रतिभा पाटिल का वैशिष्ट्य भाव उभरकर सामने आया। वह मात्र शैक्षिक पुस्तकों में ही लिप्त नहीं रहती थीं, वरन् व्यक्तित्व के सभी पहलुओं की ओर उनका ध्यान था। प्रतिभा पाटिल को शास्त्रीय संगीत के प्रति भी गहरा लगाव था। टेबल टेनिस की भी वह निपुण खिलाड़ी थीं।
याद रहे जब प्रतिभा पाटिल ने जलगाँव के मूलजी जेठा (एम.जे. कॉलेज) विश्वविद्यालय में प्रवेश किया, तो उनका व्यक्तित्व किसी दब्बू नारी जैसा नहीं था। वह महाविद्यालय तक अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण पहुँची थीं। उन्होंने टेबल टेनिस में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। एक कुशल खिलाड़ी के रूप में उन्होंने कई पुरस्कार भी प्राप्त किए। एम.ए. करने के बाद प्रतिभा पाटिल ने अपने कैरियर का चुनाव करके कानून की पढ़ाई करने का निश्चय किया। राजकीय महाविद्यालय जलगाँव से श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। यह भी उल्लेखनीय है कि सादगी की प्रतिमूर्ति प्रतिभा पाटिल को महाविद्यालय की ब्यूटी क्वीन (सौन्दर्य साम्राज्ञी) बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।
जब प्रतिभा पाटिल सामाजिक कार्यों से जुड़ी थीं, तब कांग्रेस के नेता अन्ना साहब केलकर ने उनमें छिपी राजनीतिक प्रतिभा को पहचाना। अन्ना साहब केलकर ने प्रतिभा को कांग्रेस से जोड़ लिया और वह पार्टी की कर्मनिष्ठ सदस्या बन गईं। लेकिन उस समय तक प्रतिभा पाटिल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ शून्य थीं।
फिर आया 1962 का वह दौर, जो प्रतिभा पाटिल के जीवन की दशा और दिशा तय करने के लिए प्रारब्ध ने पूर्व निर्धारित कर रखा था। अन्ना साहब केलकर ने प्रतिभा को सक्रिय राजनीति में आने का निमंत्रण देते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जलगाँव के एदलाबाद विधानसभा क्षेत्र से इन्हें कांग्रेस का टिकट प्राप्त हुआ। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के जलगाँव जिले में विधानसभा की एक सीट से ऐसे चेहरे को टिकट प्राप्त हुआ था, जिसे राजनीति का कोई अनुभव नहीं था। प्रतिभा की सादगी और निष्कलंक छवि ने एदलाबाद के मतदाताओं को रिझाने में पूरी मदद की। प्रतिभा ने भी चुनाव प्रचार में पूरी शक्ति लगा दी थी। लोग उनकी सभाओं में भारी तादाद में आ रहे थे और कांग्रेस की उस महिला उम्मीदवार के विचारों से प्रभावित हो रहे थे। फिर प्रतिभा ने बड़े अन्तर से चुनाव की वैतरणी पार कर ली। एक गैर राजनीतिक महिला ने सफलता का परचम लहराकर राजनीति में प्रवेश किया। इस प्रकार 1962 में मात्र 27 वर्ष की उम्र में ही प्रतिभा राजनीति में स्थापित हो गईं। 1967 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में उन्हें पुन: चुना गया। तब 1967 से 1972 तक इन्होंने बतौर राज्यमंत्री जन स्वास्थ्य, आवास, पर्यटन, संसदीय कार्य आदि महत्त्वपूर्ण विभाग सफलता के साथ सम्भाला। उनके कार्यों की प्रशंसा भी हुई। विभिन्न विभागों से जुड़े रहने का प्रतिभा को यह अतिरिक्त लाभ मिला कि उन्हें मंत्रालयिक प्रशासन का पूर्ण व्यावहारिक ज्ञान हो गया। वह 1972 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी विजयी रहीं। इस बार उन्हें राज्य का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इन्होंने पर्यटन, समाज कल्याण और आवास विभागों की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभाई।
1979 में कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं प्राप्त हो सका। इसके बावजूद प्रतिभा पाटिल पुनः चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुँची। तब जुलाई, 1979 से फरवरी, 1980 तक उन्होंने विपक्षी नेता की भूमिका अदा की। 1980 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रतिभा लगातार पाँचवीं बार विजयी हुईं। इस बार उन्होंने 1982 से 1985 तक कैबिनेट मंत्री के तौर पर ग्रामीण विकास, समाज कल्याण एवं नागरिक आपूर्ति तथा आवास मंत्रालयों का कार्यभार पूरी जिम्मेदारी के साथ सम्भाला। कांग्रेस के केन्द्रीय आलाकमान की दृष्टि प्रतिभा के कार्यों पर केन्द्रित थी। यही कारण है कि उनकी योग्यताओं को देखते हुए इन्हें राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य पर लाना आवश्यक समझा गया। इन्हें 1985 में राज्यसभा के लिए चुन लिया गया। 1986 में प्रतिभा को दो वर्ष के लिए राज्यसभा के उपसभापति पद का दायित्व सौंपा गया। इस नयी जिम्मेदारी को भी उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। उन्होंने सदन संचालन का दायित्व पद की गरिमा के अनुकूल किया। 1990 में अपना कार्यकाल समाप्त होने तक प्रतिभा पाटिल राज्यसभा में रहीं। उसके बाद उन्होंने अपने गृह क्षेत्र जलगाँव में जाकर सामाजिक समस्याओं का समाधान करना आरम्भ कर दिया।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कार्यकाल समाप्त हाने पर राष्ट्रपति पद के लिए यूँ तो कई नामों पर चर्चा की गई, लेकिन अन्त में दो नाम रह गए थे, जो यू.पी.ए. और वाम मोर्चा द्वारा अन्तिम रूप से विचारित होने थे। दोनों नाम महिला उम्मीदवारों के थे-एक, गांधीवादी विचारधारा वाली निर्मला देशपाण्डे और दूसरी, राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल। फिर श्रीमती प्रतिभा पाटिल के नाम पर दोनों दलों द्वारा सहमति होते ही विपक्ष की राय लेने का इंतजार नहीं किया गया। प्रतिभा पाटिल की उम्मीदवारी घोषित होने के पश्चात् बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने प्रतिभा पाटिल को समर्थन देने का भरोसा दिलाया, जो यू.पी.ए. तथा तथा वामदलों के लिए राहत का सन्देश था। इसी प्रकार महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी महाराष्ट्रियन महिला के राष्ट्रपति बनने की राह को हमवार बनाने का इरादा जाहिर कर दिया। इससे प्रतिभा पाटिल का राष्ट्रपति भवन में जाना निश्चित हो गया।
14 जून, 2007 को वामदलों ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम अन्तिम रूप से तय कर लिया। वह नाम था-राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल शेखावत का। श्रीमती प्रतिभा पाटिल से माउंट आबू में फोन पर बात करके उन्हें राष्ट्रपति पद हेतु उम्मीदवार बनाये जाने की जानकारी दी गई। प्रतिभा पाटिल ने कुछ क्षण हैरानी में गुजारने के बाद अपनी स्वीकृति दे दी। तब मीडिया को राष्ट्रपति पद हेतु प्रत्याशी की जानकारी दी गई। इस प्रकार एक माह से चल रही वार्ताओं और अनिश्चितताओं पर विराम लग गया। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने बुधवार 25 जुलाई, 2007 को औपचारिक रूप से देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का दायित्व ग्रहण किया। उन्हें दोपहर के 2.30 बजे संसद के केन्द्रीय भवन में मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके साथ ही ए.पी. जे. अब्दुल कलाम भी औपचारिक रूप से राष्ट्रपति भवन से विदा हो गए। श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की।
शपथ लेने के बाद श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने परम्परा का निर्वाह करते हुए निवर्तमान राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से सीट परिवर्तित की। तभी उनके सम्मान में संसद के बाहर 21 तोपों की ध्वनि गूँज उठी। यह कार्यक्रम 20 मिनट तक चला था। इस समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, राज्यसभा के कार्यवाहक सभापति आर. रहमान खान, पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत, यू.पी.ए. अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं इन्द्रकुमार गुजराल, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता जसवन्त सिंह सहित मंत्री, राज्यों के राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री मौजूद रहे।
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