स्वामी विवेकानंद जी का मार्गदर्शन हम भारतीयों के लिए एक मिसाल है-योगेश विश्वकर्मा
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863 को हुआ था उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ा कर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। स्वामी विवेकानंद जी का बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी इस हेतु वह पहले ब्रह्मा समाज में गए किंतु वहां उनके चित् को संतोष नहीं हुआ सन 1884 में श्री विश्व दत्त की मृत्यु हो गई घर का भार स्वामी विवेकानंद पर पड़ा घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थी कि स्वामी विवेकानंद का विवाह नहीं हुआ था ..अत्यंत गरीबी में भी विवेकानंद जी ने बड़े अतिथि से सेवी भी थे स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते, ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते.. रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर विवेकानंद जी उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किंतु परमहंस जी ने देखा और देखते ही पहचान लिया कि यह तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। परमहंस जी की कृपा से उनको आत्मसाक्षात्कार हुआ फल स्वरुप विवेकानंद जी परमहंस जी के शिष्यों में प्रमुख हो गए ।
सन्यास लेने के बाद इनका नाम नरेंद्र से विवेकानंद हुआ । 25 वर्ष की अवस्था में विवेकानंद जी ने ने गेरुआ वस्त्र पहन लिया.. तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की । सन 1893 मैं शिकागो अमेरिका में विश्व धर्म परिषद हो रही थी स्वामी विवेकानंद जी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे यूरोप अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारत वासियों को बहुत ही बुरी दृष्टि से देखते थे.. वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्व धर्म परिषद में बोलने का समय ही ना मिले ।एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए फिर तो अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ। वहां इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया ..3 वर्ष तक स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका में रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे ।
अध्यात्म विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्वनाथ हो जाएगा यह स्वामी विवेकानंद जी का दृढ़ विश्वास था अमेरिका में स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित की अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्य त्व ग्रहण किया ।4 जुलाई सन 1902 को स्वामी विवेकानंद जी ने देह त्याग दिया । वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश देशांतर ओं में उज्जवल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। ऐसे आत्मा को बार-बार नमन करते हुए सभी को उनके बताए हुए मार्गों पर चलने की अपील की।
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