श्रम कानून में ढील देने के खिलाफ 22 मई को ट्रेड यूनियन करेंगी देश भर में प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश में मजदूर 12 घंटे नहीं, बल्कि अब सिर्फ आठ घंटे ही काम करेंगे। योगी सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करते हुए मजदूरों से आठ की बजाए 12 घंटे काम लिए जाने की अधिसूचना को वापस ले लिया है। इस संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इससे पहले योगी सरकार ने आठ मई को श्रम कानूनों के तहत अधिसूचना जारी करते मजदूरों की काम की अवधि को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे किये जाने का फैसला लिया था। सरकार की इस अधिसूचना के खिलाफ वर्कर्स फ्रंट की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। इसके बाद मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ ने सरकार को नोटिस जारी किया था और अगली सुनवाई 18 मई तय की थी। इससे पहले ही प्रमुख सचिव श्रम सुरेश चन्द्र ने हाई कोर्ट को पत्र लिख कर यह जानकारी दी कि यह श्रमिकों के काम की अवधि 12 घंटे किये जाने की अधिसूचना निरस्त कर दी गयी है।
लखनऊ। कोरोना श्रम संकट के बीच राज्यों की ओर से श्रम कानूनों में ढील दिए जाने के खिलाफ अब मजदूर संगठन देश भर में हल्ला बोल की तैयारी में हैं। एक तरफ जहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी भारतीय मजदूर संघ अपनी ही पार्टी की राज्य सरकारों के खिलाफ 20 मई को देश व्यापी प्रदर्शन करेगी, दूसरी तरफ सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने एकजुट होकर 22 मई को देश भर में प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों ने कोरोना संकट के समय उद्योग जगत में आई आर्थिक मंदी को रफ्तार देने के लिए श्रम कानूनों में ढील देने और उनमें से कई कानूनों को हटाने का कदम उठाया है। इसके बाद गुजरात, ओडिशा, बिहार, गोवा ने भी श्रम कानूनों में बदलाव किये जाने को लेकर फैसला लिया। वहीं सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने राज्यों द्वारा उठाए गए इन कदमों को मजदूर विरोधी बताते हुए देश भर में प्रदर्शन करने के साथ-साथ यह मामला अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) में ले जाने का निर्णय लिया है। ऐसे में लॉकडाउन के बीच मुसीबत में फँसे देश के श्रमिकों के साथ राज्यों की ओर से श्रम कानूनों में बदलाव का मामला और भी तूल पकड़ सकता है। देश भर में प्रदर्शन की तैयारी कर रही इन ट्रेड यूनियनों में कांग्रेस से जुड़ी प्छज्न्ब् के अलावा 10 ट्रेड यूनियन शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में राज्य में लागू 38 श्रम कानूनों में बदलाव करते हुए तीन वर्षों के लिए नया अस्थायी अध्यादेश लाया गया है जिसमें ज्यादातर श्रम कानूनों को हटा दिया गया है ताकि आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाया जा सके। ट्रेड यूनियनों की ओर से एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में 38 कानूनों को 1000 दिनों के लिए अयोग्य बना दिया गया। इसके अलावा आठ राज्यों गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, और पंजाब ने फैक्ट्रीज एक्ट के उल्लंघन में दैनिक कामकाजी घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए हैं। ऐसे में श्रम कानूनों में बदलावों के खिलाफ 10 ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय स्तर के नेता 22 मई को दिल्ली के गाँधी समाधि राजघाट में एक दिवसीय भूख हड़ताल करेंगे। इसके अलावा सभी राज्यों में संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किया जायेगा। साथ ही श्रमिक मानकों और मानवाधिकारों को लेकर सरकार द्वारा उल्लंघनों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को एक संयुक्त प्रतिनिधित्व भेजेंगे। सरकारों के खिलाफ उठाए कदम श्रम कानून में बदलाव के खिलाफ कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने जताया विरोध। हिन्दू आईएनटीयूसी के सचिव बीडी गौतम ने अपने बयान में कहा, ‘राज्यों के इस कदम से अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं होगा, अगर सुधार करना है तो सरकार को उद्योगों को राहत पैकेज दे सकती है, मगर मजदूरों के मौलिक अधिकारों से छेड़छाड़ करके और उन पर प्रतिबन्ध लगाकर सरकार का यह फैसला लेना उचित नहीं है।’ वहीं भारतीय मजदूर संघ 20 मई को राष्ट्र व्यापी प्रदर्शन करने की तैयारी में है। भारतीय मजदूर संघ 16 से 18 मई तक अपनी राज्य इकाइयों के जरिये जिला प्रशासन को श्रम कानूनों में बदलाव से मजदूरों के सामने आने वाली समस्याओं को लेकर ज्ञापन सौंपेगी। संघ ने अपने बयान में कहा कि 20 मई को सोशल डिसटंसिंग का पालन करते हुए जिला मुख्यालयों और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदर्शन किया जाएगा।
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